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TirukKural Summary

भाग–१: धर्म- कांड

अध्याय 001 to 010

  1. ईश्वर- स्तुति
  2. वर्षा- महत्व
  3. संन्यासी- महिमा
  4. धर्म पर आग्रह
  5. गार्हस्थ्य
  6. सहधर्मिणो
  7. संतान- लाभ
  8. प्रेम-भाव
  9. अतिथि- सत्कार
  10. मधुर- भाषण

अध्याय 011 to 020

  1. कृतज्ञता
  2. मध्यस्थता
  3. संयमशोलता
  4. आचारशीलता
  5. परदारविरति
  6. क्षमाशीलता
  7. अनसूयता
  8. निर्लोंभता
  9. अपिशुनता
  10. वृथालाप- निषेध

अध्याय 021 to 030

  1. पाप- भीरुता
  2. लोकोपकारिता
  3. दान
  4. कीर्ति
  5. दयालुता
  6. माँस- वर्जन
  7. तप
  8. मिध्याचार
  9. अस्तेय
  10. सत्य

अध्याय 031 to 038

  1. अक्रोध
  2. अहिंसा
  3. वध- निषेध
  4. अनित्यता
  5. संन्यास
  6. तत्वज्ञान
  7. तृष्णा का उ़न्मूलन
  8. प्रारब्ध

भाग–२: अर्थ- कांड

अध्याय 039 to 050

  1. महीश महिमा
  2. शिक्षा
  3. अशिक्षा
  4. श्रवण
  5. बुद्धिमत्ता
  6. दोष- निवारण
  7. सत्संग- लाभ
  8. कुसंग- वर्जन
  9. सुविचारित कार्यकुशलता
  10. शक्ति का बोध
  11. समय का बोध
  12. स्थान का बोध

अध्याय 051 to 060

  1. परख कर विश्वास करना
  2. परख कर कार्य सौंपना
  3. बंधुओं को अपनाना
  4. अविस्मृति
  5. सुशासन
  6. क्रूर शासन
  7. भयकारी कर्म न करना
  8. दया- दृष्टि
  9. गुप्तचर- व्यवस्था
  10. उत्साहयुक्तता

अध्याय 061 to 070

  1. आलस्यहोनता
  2. उद्यमशोलता
  3. संकट में अनाकुलता
  4. अमात्य
  5. वाक्- पटुत्व
  6. कर्म- शुद्धि
  7. कर्म में दृढ़ता
  8. कर्म करने की रीति
  9. दूत
  10. राजा से योग्य व्यवहार

अध्याय 071 to 080

  1. भावज्ञत
  2. सभा- ज्ञान
  3. सभा में निर्भीकता
  4. राष्ट्र
  5. दुर्गी
  6. वित्त- साधन- विधि
  7. सैन्य- माहात्म्य
  8. सैन्य- साहस
  9. मैत्री
  10. मैत्री की परख

अध्याय 081 to 090

  1. चिर- मैत्री
  2. बुरी मैत्री
  3. कपट मैत्री
  4. मूढ़ता
  5. अहंम्मन्य मूढ़्ता
  6. विभेद
  7. शत्रुता- उत्कर्ष
  8. शत्रु- शक्ति का ज्ञान
  9. अन्तवैंर
  10. बड़ों का अपचार न करना

अध्याय 91 to 100

  1. स्त्री- वश होना
  2. वार- वनिता
  3. मद्य- निषेध
  4. जुआ
  5. औषध
  6. कुलोनता
  7. मान
  8. महानता
  9. सर्वगुणपूर्णता
  10. शिष्टाचार

अध्याय 101 to 108

  1. निष्फल धन
  2. लज्जा शोलता
  3. वंशोत्कर्ष- विधान
  4. कृषि
  5. दरिद्रता
  6. याचना
  7. याचना- भय
  8. नीचता

भाग–३: काम- कांड

अध्याय 109 to 120

  1. सौंदर्य की पीड़ा
  2. संकेत समझना
  3. संयोग का आनन्द
  4. सौंदर्य- वर्णन
  5. प्रेम- प्रशंसा
  6. लज्जा- त्याग- कथन
    115.प्रवाद जताना
  7. विरह- वेदना
  8. विरह- क्षामा को व्यथा
  9. नेत्रों का आतुरता से क्षय
  10. पीलापन- जनित पीड़ा
  11. विरह वेदनातिरेक

अध्याय 121 to 133

  1. स्मरण में एकान्तता- दःख
  2. स्वप्नावस्था का वर्णन
  3. संध्या- दर्शन से व्यथिअत होना
  4. अंगगच्छवि- नाशा
  5. हृदय से कथन
  6. धैर्य- भंग
  7. उनको उत्कंठा
  8. इंगित से बोध
  9. मिलन- उत्कंठा
  10. हृदय से रुठना
  11. मान
  12. मान की सूक्ष्मता
  13. मान का आनन्द

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